Importance of Svaha स्वाहा का अर्थ

Havan-Kund

Importance of Svaha स्वाहा का अर्थ

स्व माने मुँह खोलना हा माने बन्द करना जिस देव के नाम का मँत्र उच्चारण किया जावे, भोग उसी देव को लगता … स्व का तात्पर्य “अपना” आहा का तात्पर्य “आनंद लो”

स्वाहा का महत्व हममें से ज्यादातर नहीं जानते हैं। ऋग्वैदिक आर्यों ने यज्ञीय परंपरा के दौरान देवताओं तक हविष्य पहुंचाने के लिए अग्नि का प्रयोग आरंभ किया। किंतु यज्ञ वेदी में हवि डालने के दौरान “स्वाहा” का उच्चारण किया जाता था। स्वाहा का अर्थ ही अपने आप में बहुत रोचक है।

देव आह्वान के निमित्त मंत्र पाठ करते हुए स्वाहा का उच्चारण कर निर्धारित हवन सामग्री का भोग अग्नि के माध्यम से देवताओं को पहुंचाते हैं। इस स्वाहा का निर्धारित नैरुक्तिक अर्थ है – सही रीति से पहुंचाना परंतु क्या और किसको? यानि आवश्यक भौगिक पदार्थ को उसके प्रिय तक। हवन अनुष्ठान की ये आखिरी और सबसे महत्वपूर्ण क्रिया है। कोई भी यज्ञ तब तक सफल नहीं माना जा सकता है जब तक कि हविष्य का ग्रहण देवता न कर लें। किंतु देवता ऐसा ग्रहण तभी कर सकते हैं जबकि अग्नि के द्वारा “स्वाहा” के माध्यम से अर्पण किया जाए।

निश्चित रूप से मंत्र विधानों की संरचना के आरंभ से ही इस तथ्य पर विचार प्रारंभ हो चुका था कि  आखिर कैसे हविष्य को उनके निमित्त देव तक पहुंचाया जाए? विविध उपायों द्वारा कई कोशिशें याज्ञिक विधान को संचालित करते वक्त की गईं। आखिरकार अग्नि को माध्यम के रूप में सर्वश्रेष्ठ पाया गया तथा उपयुक्ततम शब्द के रूप में “स्वाहा”का गठन हुआ।      

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