How to Worship Lord Shiva । सोमवार को ही भगवान शिव की पूजा की जाती है क्योँ जानें

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How to Worship Lord Shiva : सोमवार को भगवान शिव का दिन माना गया है। ऐसा कहा गया है कि भगवान शिव से आदर्श पति और कोई नहीं था, इसलिए कुवारी लड़कियां सोमवार का व्रत रखती हैं, कि उन्हें शिव जी तरह का पति मिले। भगवान भोलेनाथ की  दो रूपों में पूजा की जाती है मूर्ति रूप और शिवलिंग रूप में। महादेव का मूर्तिपूजन भी श्रेष्ठ है लेकिन लिंग पूजन सर्वश्रेष्ठ है माना जाता है। हमारे शास्त्रों द्वारा शिवजी सहित किसी भी देवी देवता की खंडित, टूटी-फूटी मूर्ति का पूजन निषेध है तथा ऐसी मूर्तियों को पूजा घर में रखने की मनाही है।  लेकिन शिवलिंग एक अपवाद है।

शास्त्रों के अनुसार शिवजी का प्रतीक शिवलिंग कहीं से टूट जाने पर भी खंडित नहीं माना जाता। शिवलिंग चाहे कितना ही खंडित हो जाए वो सदेव ही पवित्र और पूजनीय माना जाता है। ऐसा इसलिए है कि भगवान शिव ब्रह्मरूप होने के कारण निष्कल अर्थात निराकार कहे गए हैं। भोलेनाथ का कोई रूप नहीं है उनका कोई आकार नहीं है वे निराकार हैं। महादेव का ना तो आदि है और ना ही अंत। लिंग को शिवजी का निराकार रूप ही माना जाता है। जबकि शिव मूर्ति को उनका साकार रूप। केवल शिव ही निराकार लिंग के रूप में पूजे जाते है।

इस रूप में समस्त ब्रह्मांड का पूजन हो जाता है क्योंकि वे ही समस्त जगत के मूल कारण माने गए हैं। शिवलिंग बहुत ज्यादा टूट जाने पर भी पूजनीय है। अत: हर परिस्थिति में शिवलिंग का पूजन सभी मनोकामनाओं को पूरा करने वाला जाता है। शास्त्रों के अनुसार शिवलिंग का पूजन किसी भी दिशा से किया जा सकता है लेकिन पूजन करते वक्त भक्त का मुंह उत्तर दिशा की ओर हो तो वह सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।

सप्ताह के सातों दिन किसी न किसी ईश्वर की पूजा, भक्ति और व्रत के लिए होता हैं पर सोमवार का दिन हिन्दू धर्म परमपराओं के अनुसार भगवान शिव को समर्पित होता है. माना जाता है कि शिवजी की भक्ति हर पल ही शुभ होती है. सच्चे मन से पूजा की जाए तो शिव अपने भक्तों पर जल्द ही प्रसन्न हो जाते है. क्यों सोमवार को ही शिवजी की पूजा करना अधिक लाभदायक होता है? आइए जानते हैं इससे जुड़ी खास बातें-

सोमवार के दिन रखा जाने वाला व्रत सोमेश्वर व्रत के नाम से जाना जाता है. इसके अपने धार्मिक महत्व होते हैं. इसी दिन चन्द्रमा की पूजा भी की जाती है. हमारे धर्मग्रंथों में सोमेश्वर शब्द के दो अर्थ होते हैं. पहला अर्थ है – सोम यानी चन्द्रमा. चन्द्रमा को ईश्वर मानकर उनकी पूजा और व्रत करना. सोमेश्वर शब्द का दूसरा अर्थ है- वह देव, जिसे सोमदेव ने भी अपना भगवान माना है. उस भगवान की सेवा-उपासना करना, और वह देवता हैं – भगवान शिव.

पौराणिक मान्यता के अनुसार इस व्रत और पूजा से ही सोमदेव ने भगवान शिव की आराधना की. जिससे सोमदेव निरोगी होकर फिर से अपने सौंदर्य को पाया. भगवान शंकर ने भी प्रसन्न होकर दूज यानी द्वितीया तिथि के चन्द्रमा को अपनी जटाओं में मुकुट की तरह धारण किया.

यही कारण है कि बहुत से साधू-संत और धर्मावलंबी इस व्रत परंपरा में शिवजी की पूजा-अर्चना भी करते आ रहे हैं क्योंकि इससे भगवान शिव की उपासना करने से चन्द्रदेव की पूजा भी हो जाती है. धार्मिक आस्था व परंपरा के चलते प्राचीन काल से ही सोमवार व्रत पर आज भी कई लोग भगवान शिव और पार्वती की पूजा करते आ रहे हैं परन्तु यह चंद्र उपासना से ज्यादा भगवान शिव की उपासना के लिए प्रसिद्ध हो गया. भगवान शिव की सच्चे मन से पूजा कर सुख और कामनापूर्ति होती है.

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