जानिए अमर अश्वत्थामा के दस रहस्य

घोल बनाकर अश्‍वत्थामा को पिला चुके हैं और अबोध बालक (अश्‍वत्‍थामा) ‘मैंने दूध पी लिया’ यह कहते हुए आनंदित हो रहा है। यह देख द्रोण स्वयं को धिक्कार उठे।

इससे यह सिद्ध होता है कि अश्‍वत्‍थामा ने अपना बचपन जैसे-तैसे खा-पीकर बिताया। उनके लिए घर में पीने को दूध तक नहीं होता था। लेकिन जब वे अपने मित्रों के बीच रहते थे तो झूठ ही कह देते थे कि मैंने तो दूध ‍पी लिया।

तीसरा रहस्य

पिता का अपमान : पिता ने जब बालक अश्‍वत्थामा की यह अवस्था देखी तो उन्होंने खुद को इसका दोषी माना और वे उसके लिए गाय की व्यवस्था हेतु स्थान-स्थान पर घूमकर धर्मयुक्त दान के लिए भटके लेकिन उन्हें कोई भी गाय दान में नहीं मिली। अंत में उन्होंने सोचा कि क्यों न अपने बचपन के मित्र राजा द्रुपद के पास जाया जाए।

वे अपने पुत्र अश्‍वत्थामा के साथ राजा द्रुपद के दरबार में जा पहुंचे। राजा द्रुपद की राजसभा में पिता की अवमानना बालक अश्‍वत्थामा ने देखी थी और देखी होगी उनकी विवशता और क्रूर विडंबना कि शस्त्र-शास्त्र के ज्ञाता भी सत्तासीन मदमत्त व्यक्ति द्वारा अपमानित होते हैं। अश्‍वत्थामा के बाल मन पर उस वक्त क्या गुजरी होगी, जब उनके पिता को वहां से धक्के मारकर निकाल दिया गया।

चौथा रहस्य

अश्वत्थामा बने शिक्षक और राजाअश्‍वत्थामा को लेकर द्रोण पाञ्चाल राज्य से कुरु राज्य में हस्तिनापुर आ गए और वहां वे कुरु कुमारों को धनुष-बाण की शिक्षा देने लगे। वहां पर वे कृप शास्त्र की शिक्षा देते थे। अश्‍वत्थामा भी पिता के इस कार्य में मदद करने लगे। वे भी कुरुओं को बाण विद्या सिखाते थे।

बाद में द्रोण कौरवों के आचार्य बन गए। उन्होंने दुर्योधन सहित अर्जुन आदि को शिक्षा दी। आचार्य के प्रति उदारता दिखाते हुए पांडवों ने गुरु दक्षिणा में उनको द्रुपद का राज्य छीनकर दे दिया। बाद में द्रोण ने आधा राज्य द्रुपद को लौटा दिया और आधे को उन्होंने अश्‍वत्‍थामा को दे दिया था। उत्तर पाञ्चाल का आधा राज्‍य लेकर अश्‍वत्‍थामा वहां के राजा बन गए और उन्होंने अपने राज्य की राजधानी अहिच्‍छ्त्र को बनाया।

अब द्रोण भारतभर के सबसे श्रेष्‍ठ आचार्य थे। कुरु राज्‍य में उन्‍हें भीष्‍म, धृतराष्‍ट्र, विदुर आदि से पूर्ण सम्‍मान प्राप्‍त था, अतः अभावों के दिन विदा हो गए थे।

पांचवां रहस्य

संपूर्ण विद्याओं में पारंगत अश्वत्थामाअश्‍वत्थामा जीवन के संघर्ष की आग में तपकर सोना बना था। महान पिता द्रोणाचार्य से उन्होंने धनुर्वेद का ज्ञान प्राप्त किया था। द्रोण ने अश्‍वत्थामा को धनुर्वेद के सारे रहस्य बता दिए थे। सारे दिव्यास्त्र, आग्नेय, वरुणास्त्र, पर्जन्यास्त्र, वायव्यास्त्र, ब्रह्मास्त्र, नारायणास्त्र, ब्रह्मशिर आदि सभी उसने सिद्ध कर लिए थे। वह भी द्रोण, भीष्म, परशुराम की कोटि का धनुर्धर बन गया। कृप, अर्जुन व कर्ण भी उससे अधिक श्रेष्ठ नहीं थे। नारायणास्त्र एक ऐसा अस्त्र था ‍जिसका ज्ञान द्रोण के अलावा माभारत के अन्य किसी योद्धा को नहीं था। यह बहु‍त ही भयंकर अस्त्र था।

अश्‍वत्थामा के ब्रह्मतेज, वीरता, धैर्य, तितिक्षा, शस्त्रज्ञान, नीतिज्ञान, बुद्धिमत्ता के विषय में किसी को संदेह नहीं था। दोनों पक्षों के महारथी उसकी शक्ति से परिचित थे। महाभारत काल के सभी प्रमुख व्यक्ति अश्‍वत्थामा के बल, बुद्धि व शील के प्रशंसक थे।

भीष्मजी रथियों व अतिरथियों की गणना करते हुए राजा दुर्योधन से अश्‍वत्थामा के बारे में उनकी प्रशंसा करते हैं किंतु वे अश्‍वत्थामा के दुर्गुण भी बताते हैं। उनके जैसा निर्भीक योद्धा कौरव पक्ष में और कोई नहीं था।

छठा रहस्य

अश्वत्थामा का भयजब राक्षसों की सेना ने घटोत्कच के नेतृत्व में भयानक आक्रमण किया तो सभी कौरव वीर भाग खड़े, तब अकेले ही अश्‍वत्थामा वहां अड़े रहे। उन्होंने घटोत्कच के पुत्र अंजनपर्वा को मार डाला। साथ ही उन्होंने पांडवों की

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