Principles of Jainism – जैन धर्म के सिद्धांत

नष्ट होगा, जब मनुष्य कर्मफल से मुक्त हो जाए। अर्थात सम्पूर्ण कर्मफल निरोध ही निर्वाण प्राप्ति का साधन है।

पंचमहाव्रत
जैन धर्म में भिक्षु वर्ग के लिए निम्नलिखित पंचमहाव्रतों की व्यवस्था की गई है- 
अहिंसा महाव्रत — जानबूझ कर या अनजाने में भी किसी प्रकार की हिंसा नहीं करनी चाहिए। इसके लिए ऐसे मार्गों पर चलने, ऐसा भोजन करने, ऐसे स्थान पर मल-मूत्र त्याग करने तथा ऐसी वस्तुओं का उपयोग करने की बात कहीं गई, जिसमें कीट-पतंगों की मृत्यु न हो। साथ ही सदैव मधुर वाणी बोलने की भी बात कहीं गई, ताकि बाचसिक हिंसा नहीं हो। 
असत्य त्याग महाव्रत — मनुष्य को सदैव सत्य तथा मधुर बोलना चाहिए। इसके लिए बिना सोचे-समझे नहीं बोलें, क्रोध आने पर मौन रहें, लोभ की भावना जागृत होने पर मौन रहें, भयभीत होने पर भी असत्य न बोलें तथा हंसी-मजाक में भी असत्य न बोलें। 

अस्तेय महाव्रत — बिना अनुमति किसी भी दूसरे व्यक्ति की कोई वस्तु नहीं लेनी चाहिए और न ही इसकी इच्छा करनी चाहिए। 

ब्रह्मचर्य महाव्रत — भिक्षु को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। इसके लिए किसी नारी को देखना, बात करना वर्जित है तथा संसर्ग का ध्यान करना चाहिए। 

अपरिग्रह महाव्रत — भिक्षुओं को किसी प्रकार का संग्रह नहीं करना चाहिए। संग्रह से आसक्ति उत्पन्न होती है, जो भिक्षु को उसके उद्देश्य से दूर करता है। 

पंच अणुव्रत
जैन धर्म गृहस्थों के लिए भी इन पाँच व्रतों के पालन की बात करता है, परन्तु उनके लिए इन व्रतों की कठोरता कम कर दी गई। ये पंच अणुव्रत हैं- 
1. अहिंसाणुब्रत 
2. सत्याणुव्रत 
3. अस्तेयाणुव्रत 
4. ब्रह्मचर्याणुव्रत 
5. अपरिग्रहाणुव्रत 

अठारह पाप
१८ तरह के होते हैं |
१. प्राणातिपात (हिंसा )
२. मृषावाद ( असत्य )
३. अदत्तादान ( चोरी )
४. मैथुन ( अब्र्ह्म्च्र्य )
५. परिग्रह 
६. क्रोध 
७. मान 
८. माया 
९. लोभ 
१०.राग 
११.द्वेष 
१२.कलह 
१३.अभ्याख्यान ( मिथ्या आरोप लगाना )
१४.पैशुन्य ( चुगली )
१५.परपरिवाद ( निंदा करना )
१६.रति-अरति ( असंयम में रूचि व संयम में अरुचि )
१७.माया-मृषा ( माया सहित झूठ बोलना )
१८.मिथ्यादर्शन शल्य ( विपरीत दर्शन में श्रद्धा )
ये भेद वास्तव में पाप-तत्व के नहीं किन्तु जिन कारणों से पाप-कर्मों का बंध होता है,
उन कारणों के अनुसार १८ भागों में किया गया है |
नोट – इन सबको पढकर पाठक अपने धरातल पर सोचे कि मैं अभी किस धरातल पर हूं |
जहां हूं उससे विकास करना है तो इन सबका चिंतन करके कम करने का प्रयास करे |

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