महाशिवरात्रि, रात्रि का पर्व है, इसी महान रात्रि को परम् पिता शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था, जिनसे ब्रह्मांड का सृजन हुआ। हम सभी मे उन्ही का अंश है।इस वर्ष यह पर्व 11 मार्च को दोपहर 14:39:12 को आरम्भ होगा और 12 मार्च दोपहर 15:01:58 तक रहेगा। इस महान रात्रि को पूजा पाठ ध्यान साधना अभिषेक आदि अति महत्वपूर्ण हैं।
इस रात्रि को शिव और शक्ति की ऊर्जा तरंगे इस पृथ्वी के अति निकट होती हैं। अर्थात पूजा उपासना का प्रभाव अत्यंत बढ़ जाता है। वर्षों के ध्यान साधना आदि से जो प्राप्ति नही होती वह केवल इस रात्रि में जाप या अभिषेक से हो जाती है। न जाने कितने ही साधक इस रात्रि का इंतज़ार करते रहते हैं।
यहां यह समझ लेना चाहिए कि यह पर्व अकेले महादेव को समर्पित नही है, शिव तो शक्ति के साथ अर्धनारेश्वर हैं। शिव शक्ति के बिना शव हैं। शक्ति या प्रकृति माँ पार्वती हैं। इस महान उत्सव को शिव शक्ति दोनों की साथ मे पूजा होनी चाहिए। जिसके अपना एक महत्व है और शीघ्रफलदायी भी है।
यह पर्व इनसे कुछ मांगने का नही है, यह पर्व तो उत्साहपूर्ण भक्ति और समर्पण का है। हम, हमारी बुद्धि, हमारे भाव, हमारी सांसे सब इन्ही से ही हैं। माँ पार्वती ही अन्नपूर्णा है और परमपिता शिव की पालक। अतः समर्पण और धन्यवाद भाव से इनका ध्यान चिंतन पूजन करना चाहिये। ये प्रसन्न हो कर क्या नही दे सकते, बस तार मिलने की देर है।
इस रात्रि को अपने घर के ही मंदिर में गणेश जी का ध्यान करके शिवलिंग(या शिव पार्वती का चित्र) पर भगवान शिव और माता पार्वती का भाव रखें। भगवान शिव को हल्दी लगाए (इन्हें हल्दी केवल शिवरात्रि को ही लगाई जा सकती है)। इनका चांदी, तांबे या पीतल के बर्तन से अभिषेक करें।
माता के लिए श्रृंगार की वस्तुएं भेंट करें। धूप, दीपक, सुगन्ध, मिठाई और पुष्प भेंट करें, इसे ही पंचोपचार पूजन कहते हैं। इन्हें कलावा बांधे। लाल चंदन का तिलक करें। फिर स्वयं को भी तिलक करें। और यथा सम्भव इस मंत्र का जाप करें-
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् ।
सदा बसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानी सहितं नमामि ।।
इस अलौकिक मंत्र के प्रत्येक शब्द में भगवान शिवजी की स्तुति की गई हैं । इसका अर्थ इस प्रकार है- कर्पूरगौरं- कर्पूर के समान गौर वर्ण वाले । करुणावतारं- करुणा के जो साक्षात् अवतार हैं । संसारसारं- समस्त सृष्टि के जो सार हैं । भुजगेंद्रहारम्- इस शब्द का अर्थ है जो सांप को हार के रूप में धारण करते हैं । सदा वसतं हृदयाविन्दे भवंभावनी सहितं नमामि- इसका अर्थ है कि जो शिव, पार्वती के साथ सदैव मेरे हृदय में निवास करते हैं, उनको मेरा नमन है ।
अर्थात- जो कर्पूर जैसे गौर वर्ण वाले हैं, करुणा के अवतार हैं, संसार के सार हैं और भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है ।
जय माँ काली संग बाबा महाकाल
आचार्य शिवा नन्द भैरव