Chappan Bhog ke Naam । छप्पन भोग के नाम

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Chappan Bhog ke Naam : भगवान को लगाए जाने वाले भोग की बड़ी महिमा है. इनके लिए 56 प्रकार के व्यंजन परोसे जाते हैं, जिसे छप्पन भोग कहा जाता है. यह भोग रसगुल्ले से शुरू होकर दही, चावल, पूरी, पापड़ आदि से होते हुए इलायची पर जाकर खत्म होता है. अष्ट पहर भोजन करने वाले बालकृष्ण भगवान को अर्पित किए जाने वाले छप्पन भोग के पीछे कई रोचक कथाएं हैं. भगवान श्री कृष्ण मनुष्य रूप में पृथ्वी पर आये थे। और भक्तों के बीच मनुष्य रूप में आज भी मौजूद हैं इसलिए कृष्ण की सेवा मनुष्य रूप में की जाती है। सर्दियों में इन्हें कंबल और गर्म बिस्तार पर सुलाया जाता है। उष्मा प्रदान करने वाले भोजन का भोग लगाया जाता है।

भगवान को लगाए जाने वाले भोग की बड़ी महिमा है। इनके लिए 56 प्रकार के व्यंजन परोसे जाते हैं जिसे छप्पन भोग कहा जाता है। यह भोग रसगुल्ले से शुरू होकरर दही, चावल, पूरी, पापड़ आदि से होते हुए इलायची पर जाकर खत्म होता है।भगवान को अर्पित किए जाने वाले छप्पन भोग के पीछे कई रोचक कथाएं हैं। हिन्‍दू मान्यता के अनुसार, भगवान श्रीकृष्‍ण एक दिन में आठ बार भोजन करते थे। जब इंद्र के प्रकोप से सारे व्रज को बचाने के लिए भगवान श्री कृष्‍ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाया था, तब लगातार सात दिन तक भगवान ने अन्न जल ग्रहण नहीं किया।

दिन में आठ प्रहर भोजन करने वाले व्रज के नंदलाल कन्हैया का लगातार सात दिन तक भूखा रहना उनके भक्तों के लिए कष्टप्रद बात थी। भगवान के प्रति अपनी अन्‍न्य श्रद्धा भक्ति दिखाते हुए व्रजवासियों ने सात दिन और आठ प्रहर का हिसाब करते हुए 56 प्रकार का भोग लगाकर अपने प्रेम को प्रदर्शित किया। तभी से भ्‍ाक्‍तजन कृष्‍ण भगवान को 56 भोग अर्पित करने लगे।

श्रीमद्भागवत के अनुसार, गोपिकाओं ने एक माह तक यमुना में भोर में ही न केवल स्नान किया, अपितु कात्यायनी मां की अर्चना भी इस मनोकामना से की कि उन्हें नंदकुमार ही पति रूप में प्राप्त हों। श्रीकृष्ण ने उनकी मनोकामना पूर्ति की सहमति दे दी। व्रत समाप्ति और मनोकामना पूर्ण होने के उपलक्ष्य में ही उद्यापन स्वरूप गोपिकाओं ने छप्पन भोग का आयोजन किया।

ऐसा भी कहा जाता है कि गौ लोक में भगवान श्रीकृष्‍ण राधिका जी के साथ एक दिव्य कमल पर विराजते हैं। उस कमल की तीन परतें होती हैं। प्रथम परत में आठ, दूसरी में सोलह और तीसरी में बत्तीस पंखुड़िया होती हैं। प्रत्येक पंखुड़ी पर एक प्रमुख सखी और मध्य में भगवान विराजते हैं। इस तरह कुल पंखुड़ियों संख्या छप्‍पन होती है। 56 संख्या का यही अर्थ है।

श्रीकृष्‍ण को प्रस्‍तुत 56 भोग पर आचार्य गोस्वामी पुष्पांग कहते हैं कि व्रज के मंदिरों में दूध, दही और घी के संयोग से यहां विभिन्न प्रकार के भोजन बनाए जाते हैं। वह इस क्षेत्र की अपनी विशेषता है।व्रज के मंदिरों में छप्पन भोग, अन्नकूट या कुनवाड़ों में एक ही वस्तु को जिन विविध रूपों में बनाया जाता है, मेरे विचार से वैसी विविधता कहीं अन्यत्र नहीं होगी। मथुरा के द्वारकाधीश मंदिर में आज भी अनेक प्रकार की पूरियां प्रतिदिन भोग में आती हैं। ठाकुरजी को अर्पित भोग में दूध, घी, दही की प्रध्‍ानता होती है, लेकिन इनको कभी भी बासी भोजन अर्पित नहीं करते हैं।

छप्पन भोग इस प्रकार है:

भक्त (भात)

सूप (दाल)

प्रलेह (चटनी)

सदिका (कढ़ी)

दधिशाकजा (दही शाक की कढ़ी)

सिखरिणी (सिखरन)

अवलेह (शरबत)

बालका (बाटी)

इक्षु खेरिणी (मुरब्बा)

त्रिकोण (शर्करा युक्त)

बटक (बड़ा)

मधु शीर्षक (मठरी)

फेणिका (फेनी)

परिष्टïश्च (पूरी)

शतपत्र (खजला)

सधिद्रक (घेवर)

चक्राम (मालपुआ)

चिल्डिका (चोला)

सुधाकुंडलिका (जलेबी)

धृतपूर (मेसू)

वायुपूर (रसगुल्ला)

चन्द्रकला (पगी हुई)

दधि (महारायता)

स्थूली (थूली)

कर्पूरनाड़ी (लौंगपूरी)

खंड मंडल (खुरमा)

गोधूम (दलिया)

परिखा

सुफलाढय़ा (सौंफ युक्त)

दधिरूप (बिलसारू)

मोदक (लड्डू)

शाक (साग)

सौधान (अधानौ अचार)

मंडका (मोठ)

पायस (खीर)

दधि (दही)

गोघृत

हैयंगपीनम (मक्खन)

मंडूरी (मलाई)

कूपिका (रबड़ी)

पर्पट (पापड़)

शक्तिका (सीरा)

लसिका (लस्सी)

सुवत

संघाय (मोहन)

सुफला (सुपारी)

सिता (इलायची)

फल

तांबूल

मोहन भोग

लवण

कषाय

मधुर

तिक्त

कटु

अम्ल

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