क्या आप जानते हैं गीता सुनाने में कितना समय लगा

किन किन लोगों को उनकी मृत्यु यहाँ खींच लाई है, मुझे किन योद्धाओं के साथ युद्ध में रत होना है?”

और, दोनों दलों के मध्य जो दूरी थी उसके बीच में अर्जुन का अकेला रथ बढ़ आया। स्वभावत: उस समय उभय दलों के सभी लोगों की दृष्टि उस अकेले रथ की दिशा में केन्द्रित हो गई थी। कौरवपक्ष के सेनापति भीष्म थे, और पाण्डवगण ने अपनी सेना के नेतृत्व का भार सौंपा था महाराज द्रुपद के ज्येष्ठ पुत्र धृष्ठद्युम्न के हाथों। लेकिन यह सर्वविदित था कि पाण्डवपक्ष के सर्वश्रेष्ठ महारथी अर्जुन हैं और पितामह भीष्म के सम्मुख युद्ध में वही टिक सकते हैं। इसी से अर्जुन का रथ जब पाण्डवों की सेनाभूमि से आगे रणक्षेत्र के मध्य भाग में बढ़ आया तो कौरव उसके प्रति अत्यधिक सतर्क हो उठे।

सहसा अर्जुन ने अपने हाथों में पकड़े हुए गाण्डीव को रथ के पिछले भाग में फेंक दिया और अपने मस्तक को झुकाकर खिन्न मुख रथ पर बैठे रहे। उन्होंने कह दिया, ”हृषिकेश, यहाँ तो दोनों दलों में अपने स्वजन-संबंधी ही दिखाई पड़ रहे हैं। गुरु, दादा, मामा, साले, श्वसुर, भाई – सब अपने ही लोग तो हैं। जिनकी सुख-सुविधा के लिए राज्य चाहिए, वह तो अपने प्राणों का मोह त्याग कर स्वयमेव युद्धभूमि में आ पहुँचे हैं। मैं त्रिलोक का राज्य पाने के लिए भी इनका वध नहीं कर सकता। अब यह आप ही बताइए कि ऐसी स्थिति में मुझे क्या करना अपेक्षित है, क्योंकि मेरी बुद्धि तो इस समय कोई भी निर्णय लेने मे समर्थ नहीं।”

और यही वह परिस्थिति थी जिसके मध्य श्रीकृष्ण ने धनंजय को गीता का उपदेश किया – गीता का वह उपदेश जिसे सुनकर अर्जुन ने अपने गाण्डीव को पुन: उठा लिया था और बोला था, ”मेरा मोह नष्ट हो गया, आपकी कृपा से मुझे यथार्थ-स्मृति प्राप्त हुई और अब मैं पूरी तरह आपके निर्देशों का पालन करने के लिए कृतसंकल्प हूँ।”

भगवान कृष्णद्वैपायन वेदव्यास ने महाभारत युद्ध प्रारंभ होने के पहले धृतराष्ट्र से कहा था, ”राजन, यदि तुम युद्ध देखना चाहो तो मैं तुम्हें दिव्यदृष्टि दे सकता हूँ।”धृतराष्ट्र का त्वरित उत्तर था, ”अपने नेत्रों से मैं स्वजनों का संहार नहीं देखना चाहता, लेकिन साथ ही युद्ध का पूरा विवरण जानते रहने की उत्कंठा भी मुझे है। अत: यह दिव्यदृष्टि आप संजय को दे दें। वह युद्ध के दृश्य देखदेख कर उसका विवरण मुझे सुनाता रहेगा।”

व्यास ने संजय को आशीर्वाद देते हुए उसे वरदान दिया था, ‘रणक्षेत्र में जो कुछ भी होगा उसे तुम यहीं बैठ कर प्रत्यक्षरूप से देख सकोगे। वहाँ की प्रत्येक बातचीत तुम्हें ज्यों की त्यों सुनायी देगी, और सम्बद्ध व्यक्तियों के मनोगत भाव तुम्हारे

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