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Movie Review : फिल्म सूरमा

क्रिटिक रेटिंग  :  4/5

स्टार कास्ट  :  दिलजीत दोसांझ, तापसी पन्नू, विजय राज, अंगद बेदी

डायरेक्टर  :  शाद अली

प्रोड्यूसर  :  चित्रांगदा सिंह, दीपक सिंह

जोनर  :  बायोपिक

अवधि  :  131 मिनट

अगर फिल्म सूरमा देखने से पहले आपने 2007 में आई चक दे इंडिया को रीकॉल कर लिया है, तो आप गलत साबित हो सकते हैं। सूरमा में चक दे इंडिया की हल्की सी भी झलक नहीं दिखाई दी है। लेकिन भारत के राष्ट्रीय खेल हॉकी और उसके लिए खिलाड़ियों की मरने की हद वाली दीवानगी रोंगटे खड़े कर देगी।

सूरमा का एंथम पीछे मेरे अंधेरा आगे अंधी आंधी मैंने ऐसी आंधी में दिया जलाया है. फिल्म के टाइटल को पूरा करता है। सूरमा में दिलजीत की एक्टिंग ने संदीप के दर्द को दोबारा जीने पर मजबूर कर दिया है।सूरमा की कहानी हॉकी के पूर्व कप्तान संदीप सिंह की जिंदगी पर आधारित है।

संदीप (दिलजीत दोसांझ) हरियाणा के एक छोटे से कस्बे शाहाबाद में रहते हैं। 1994 में इसे देश की हॉकी की राजधानी कहा जाता था। कस्बे के ज्यादातर लड़कों का यही सपना है कि उन्हें भारतीय हॉकी टीम में खेलने का मौका मिले। संदीप की आंखें भी इसी सपने से भरी थीं लेकिन यह सपना तब टूटने लगता है जब कोच उनसे कड़ी मेहनत कराते हैं।

इसके बाद वे हॉकी से दूर चले जाते हैं।कुछ समय के बाद संदीप की लाइफ में हरप्रीत (तापसी पन्नू) की एंट्री होती है और दोनों को एक-दूसरे से प्यार हो जाता है। हरप्रीत संदीप को एक बार फिर हॉकी खेलने के लिए प्रेरित करती है और वे हॉकी को जिंदगी का गोल बना लेते हैं।

संदीप की लाइफ उस वक्त बिखर जाती है जब एक मैच के बाद घर लौटते समय उनकी कमर में गोली लग जाती है। जिससे कमर से नीचे का हिस्सा काम करना बंद कर देता है। रियल लाइफ संदीप ने कैसे वापस हॉकी में अपना मुकाम हासिल कर वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया, फिल्म में यही देखने मिलेगा।

दिलजीत दोसांझ ने संदीप सिंह के रोल के साथ पूरा इंसाफ किया है। पर्दे पर उन्हें देखकर संदीप सिंह की छवि बन जाती है। गजब की एक्टिंग के साथ उन्होंने हॉकी स्टिक का जादू भी दिखाया है। फिल्म की पूरी कहानी संदीप के इर्द-गिर्द है, ऐसे में उन्होंने एक्टिंग में सौ फीसदी दिया है।

हरप्रीत का रोल निभाने वाली तापसी पन्नू पिछली कई फिल्मों से फैन्स के दिल पर छाप छोड़ने में कामयाब रही हैं और इस बार भी उन्होंने ऐसा ही किया।अक्सर कॉमेडी करते नजर आने वाले विजय राज ने संदीप के सपोर्टिव कोच के रोल साथ पूरी ईमानदारी दिखाई है।

दूसरी तरफ, अंगद बेदी ने डॉटिंग ब्रदर का रोल भी अच्छा प्ले किया है। हॉकी को फिल्म में जिंदा रखने के लिए दिलजीत और अंगद ने कड़ी मेहनत भी की है।फिल्म का डायरेक्शन शाद अली ने किया है। फिल्म में कई उतार-चढ़ाव थे, जिसके चलते स्टोरी कभी-कभी धीमी भी हुई, लेकिन जल्द ही ट्रैक पर भी लौटी।

शाद की कोशिश रही कि फिल्म में आखिर तक रोमांच बनाकर रखा जाए। जिसमें वे कामयाब भी रहे हैं। पर्दे पर उनकी मेहनत दिखाई देती है।फिल्म में म्यूजिक शंकर-अहसान-लॉय ने दिया है। लिरिक्स गुलजार के हैं। म्यूजिक और गीत की वजह से फिल्म को देखने का मजा दोगुना हो जाता है। जिंदगी की मुश्किलों से लड़कर कामयाबी कैसे पाई जाती है, इस फिल्म की कहानी यही प्रेरणा देती है।

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