फिल्‍म रिव्‍यू: कागज के फूल

यू-ए- कॉमेडी
निर्देशक- अनिल कुमार चौधरी
प्रमुख कलाकार- विनय पाठक, मुग्धा गोडसे, सौरभ शुक्ला, राइमा सेन
स्टार – 1
मुंबई। साल 1959 में आई थी गुरुदत्त की क्लासिक फिल्म ‘कागज के फूल’। हालांकि उस समय इसे बॉक्स ऑफिस पर सफलता नहीं मिली थी, लेकिन बाद में इसे क्लासिक फिल्म का दर्जा मिला। फिल्म क्रिटिक्स ने इसे अपने समय से कहीं आगे की फिल्म बताया था। साल 2015 में इसी टाइटल से बनी फिल्म हमें इसके कुछ सीन याद दिलाती है।

कागज के फूल
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कहानी
फिल्म में पुरुषोत्तम (विनय पाठक) एक ईमानदार लेखक है, पर उसके काम को पहचान नहीं मिलती, क्योंकि पब्लिशर्स मसाला चाहते हैं। वहीं उसकी पत्नी (मुग्धा गोडसे) उसे शांति से रहने नहीं देती। इसके कारण पति एकाएक पत्नी से दूर हो जाता है। जुए और शराब की लत देवदास की चंद्रमुखी (राइमा सेन) के पास चला जाता है।
पाठक की एक्टिंग में अब दोहराव नजर आने लगा है। हालांकि उन्होंने अपनी एक्टिंग का लोहा फिल्म बदलापुर में मनवा लिया था। सौरभ शुक्ला का फिल्म में खास योगदान नहीं रहा। पाठक कंपनी के आगे गोडसे की एक्टिंग सिकुड़कर रह गई हैं। खैर, फिल्म देखकर आपको पता लग जाएगा फूल और ‘फूल’ में क्या अंतर है।
इसलिए देखें
अगर आप विनय पाठक और सौरभ शुक्ला की एक्टिंग के दीवाने हैं, तो आपको ये फिल्म जरूर देखनी चाहिए। विनय पाठक और सौरभ शुक्ला ने इस फिल्म में भी निराश नहीं किया है। वहीं राइमा सेन ने भी ग्लैमर का खूब तड़का लगाया है। कुल मिलाकर ये फिल्म आपको बोर नहीं करेगी।
अवधि- 1 घंटा 49 मिनट

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