देश और प्रदेशों की सरकारें अच्छा काम करें, अधिकारी ईमानदार हो जाएं और लोग स्वार्थ के बजाय सच्चाई के रास्ते पर चलें तो हम बहुत सारी बेकार फिल्में देखने से बच सकते हैं। अमूमन ऐसा होता नहीं। नतीजा यह कि बरसों से सत्ता, नेताओं और अधिकारियों को ठोकने में इतनी रीलें नष्ट हो चुकी हैं कि फार्मूला दम तोड़ गया है।
परंतु जैसे हर साल जलाने के बाद भी रावण मरता नहीं, वैसे ही ये फार्मूला फिल्में बार-बार पिटने के बावजूद टिकट खिड़की पर लौटती हैं। गब्बर इज बैक इसी का नमूना है। यह २००२ की निर्देशक आर.मुरुगदौस की फिल्म रामन्ना का रीमेक है, जो २००३ में तेलुगु में टैगोर नाम से बनी थी। दस-बारह साल पुराना बासी आइडिया हिंदी दर्शकों को रंग-रोगन करके परोसा गया है।