इंडिया स्पेशल

दिल्ली में नशेड़ियों की बढ़ती तदात

हमारी दिल्ली तुम्हारी दिल्ली हम सब की प्यारी दिल्ली यह जुम्ला कहना कितना असान हैं। पर जब हम हकीक्त के पन्ने पलट कर देखें तो पता चलता है कि हम सब के दिल मे कितना प्यार है अपनी दिल्ली के लिए लोगो के अन्दर प्यार है पर प्यार का इजहार करने का तरीका अफशोस जनक है यह सुनकर कुछ अजीब …

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दिल्ली की सड़को पर दो करवट सोती रातें

ठंडक  की सर्द रातों मे जब हम अपने घरो में गर्म बिस्तरॉ की आगोस में होते हैं। तब कई बदनसीब ऐसे भी होते है जिन्हें एक चादर तक नसीब नही होती है। उन्हें सिर्फ़ एक उम्मीद होती है की वो कल का सूरज देख सकेंगे। भारत में 42 करोड़ से ज़्यादा लोग अपनी रातें खुले में बिताते हैं जिनमे से 1 करोड़ से …

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नारी बिन विज्ञापन न होय…

नारी जिसे पहले के समय में देवी माना जाता था. और वह लक्ष्मी का स्वरूप होती थी जिनके बिना कोई भी अनुष्ठान पूरा नही होता था. वही नारी आज ऐसी हो गयी है. जिसको पहचानना मुश्किल होता जा रहा है. आज का दौर तेजी से बदलते नैतिक मूल्यों का है. इस युग में कल तक जो कुछ वर्जनाओं के घेरे …

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भारतीय रिज़र्व बैंक:एक लम्‍बी और कठिन यात्रा

भारतीय रिज़र्व बैंक एक ही दिन में देश भर के बैंकों का बैंक नहीं बना है। क्रमिक विकास, एकीकरण, नीतिगत बदलावों और सुधारों की एक लम्‍बी और कठिन यात्रा रही है, जिसने भारतीय रिज़र्व बैंक को एक अलग संस्‍थान के रूप में पहचान दी है। रिज़र्व बैंक की स्‍थापना के लिए सबसे पहले जनवरी, 1927 में एक विधेयक पेश किया …

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आखिर क्या हैं गणतंत्र दिवस के सही मायने?

पिछले एक वर्ष में भारत बदला है। गणतंत्र दिवस आने वाला है। पर आखिर क्या हैं गणतंत्र दिवस के सही मायने? क्या आज का भारत गणतंत्र है? क्या यह वही भारत है जिसे ध्यान में  रखकर संविधान लिखा गया होगा? इस समय स्कूलों में दाखिले की होड़ लगी हुई है। किराने की दुकान पर एक महाशय फ़ोन पर बात कर …

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नेहरू राज से ही करप्शन का साज-जनता पर गाज,नेताओं को नाज

यूं भूखा होना कोई बुरी बात नहीं है, दुनिया में सब भूखे होते हैं, कोई अधिकार और लिप्सा का,कोई प्रतिष्ठा का,कोई आदर्शों का, और कोई धन का भूखा होता है,ऐसे लोग अहिंसक कहलाते हैं, मांस  नहीं खाते, मुद्रा खाते हैं-दुष्यंत कुमार चौतरफा घपलों-घोटालों का दौर है। तमाम चोर के विदेश में जमा कालेधन का शोर है।कोई सियासतदां करता नहीं गौर है। जनता बोर है। छिनरहा कोर है दिखता नहीं कोई छोर है। कहीं नहीं कोई ठौर है। अब बसंतकी नहीं भोर है। मस्ती में नाचता नहीं मोर है। हिंदुस्तान पर घटा घनघोरहै। लोकतंत्र का दुखता …

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लोकपाल को बिल में नहीं दिल में बसाएं

वर्ष २०११ बीत चुका है और नव वर्ष अपनी बाहें फ़ैलाये हमारा स्वागत कर रहा है। पर यह तो हर वर्ष की बात है। हम दिसम्बर के अंतिम सप्ताह से नये साल की तैयारी में लग जाते हैं। पर हर वर्ष तो एक सा ही होता है। समाज व देश वहीं का वहीं है। एक साल जाता है तो दूसरा …

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“शहीदों के साथ कैसा मजाक “

“शहीदों  की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले “ वतन पर मरनेवालों का यही बाकी निशां होगा। “ गुलाम भारत में शहीदों  के लिए लिखी गयी ये चंद लाइने आज वास्तव में अपनी साथर्कता सिद्ध करती हुई दिखाई देती हैं। अभी दो दिन पहले हमारी संसद पर हुए हमले की बरसी थी हमारे गणमान्य नेताओं ने इस दिन एक बार फिर …

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"शहीदों के साथ कैसा मजाक "

“शहीदों  की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले “ वतन पर मरनेवालों का यही बाकी निशां होगा। “ गुलाम भारत में शहीदों  के लिए लिखी गयी ये चंद लाइने आज वास्तव में अपनी साथर्कता सिद्ध करती हुई दिखाई देती हैं। अभी दो दिन पहले हमारी संसद पर हुए हमले की बरसी थी हमारे गणमान्य नेताओं ने इस दिन एक बार फिर …

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खंडहरों में गुम हो गई शहीदों की शहादत

छतरपुर। भारत कि आजादी की पहली चिंगारी 1857 कि क्रांति की भले ही सरकार ने कुछ वर्ष पहले डेढ़ सौ वीं वर्षगांठ मनाई हो लेकिन इस ज्वाला को प्रज्ज्वलित करने को सरकार भूल गई है। देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्य न्योछावर करने की गवाह रहीं काल कोठरियां अब खंडहरों में तब्दील हो चुकी हैं। मध्य भारत में तेजी …

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