हिंदू गुरु विकी बावा ने भारत सरकार से भारतीय अमेरिकी व्यवसायी निकेश पटेल को रिहा कराने के लिए कदम उठाने और राजनयिक चैनलों का उपयोग करने का आह्वान किया

पटेल की सजा में नस्लीय भेदभाव से अमेरिका की कानूनी प्रणाली में भारतीय और एशियाई अमेरिकियों से बेशुमार असमानताओं का खुलासा होता है 

नई दिल्ली, 12 जनवरी, 2023 /PRNewswire/ — भारतीय अमेरिकी व्यवसायी निकेश पटेल की सजा, जो उनके श्वेत सह-प्रतिवादी, टिमोथी फिशर की तुलना में दस गुना अधिक थी, भारतीय और एशियाई अमेरिकियों के संबंध में कानूनी प्रणाली में नस्लीय पूर्वाग्रह में एक अनसुलझी असमानता को उजागर करती है, विशेष रूप से ऐसे समय में जबकि एशियाई लोगों के नस्लीय भेदभाव पर ध्यान दिया जा रहा है व और अधिक क्षेत्रों में इसका दस्तावेजीकरण किया जा रहा है

One of India's leading Gurus of modern Hinduism, Jagadguru Shree Vallabhacharyaji, also known as Vicki Bava, (Guru Bava) and Chief Minister Yogi Adiyanath attend rally.

भारतीय अमेरिकी और चार बच्चों के पिता पटेल, इस समय एक सफेदपोश सजा काट रहे हैं, जहां उन्हें अपने उस सह-प्रतिवादी की तुलना में बहुत कठोर सजा मिली, जो अस्थमा के कारण 2021 में अनुकंपा रिहाई पर पहले ही जेल से रिहा हो चुका है। पटेल भी अस्थमा से पीड़ित हैं, लेकिन उन्हें कोई तवज्जो नहीं दी गई, जबकि सरकार के अपने शब्दों में वे “लगभग बराबर” थे। पटेल की कैद के पांच साल पूरे हुए हैं।

रेवरन्ड जेसी जैक्सन, सीनियर ने सार्वजनिक रूप से शिकागो में अमेरिकी अटॉर्नी, जॉन लॉश से मुलाकात की, और संयुक्त राज्य अमेरिका की कानूनी प्रणाली की पड़ताल की मांग की जबकि हिंदू लीडर गुरु विकी बावा ने भी भारत में भारत सरकार के अधिकारियों से आगे आने का आग्रह किया। 377 भारतीयों के एक रेंडम सर्वेक्षण व ऑनलाइन मतदान में पाया गया कि 90 प्रतिशत का मानना है कि पटेल को रिहा करने के लिए भारत सरकार को कदम उठाना चाहिए और राजनयिक चैनलों का उपयोग करना चाहिए। पटेल के माता-पिता अमेरिका रहने आए थे और यह परिवार अपने पिता पर निर्भर करता है, जो अन्यथा समुदाय के एक प्रतिष्ठित सदस्य रहे हैं। पटेल के मामले से पता चलता है कि नस्लीय असमानता वित्तीय संसाधनों के बावजूद भी कायम है।

Washington Post ने YouGov के ऑनलाइन पैनल के आधार पर जून 2021 में रिपोर्ट छापी कि “2 में से 1 भारतीय अमेरिकी ने हाल ही में प्राय: अपनी त्वचा के रंग के आधार पर भेदभाव का सामना किया।” Washington Post का लेख इंगित करता है कि हालांकि भारतीय अमेरिकी उच्च स्तर की पेशेवर और वित्तीय सफलता का आनंद लेते हैं, लेकिन यह उनका भेदभावकारी ताकतों से पीछा नहीं छुड़वा पाई है। पटेल का मामला इस अध्ययन का एक उदाहरण है।

जबकि श्वेत व लातिनो सजा को लेकर आंकड़े मौजूद हैं, जो अधिक आम होता है, भारतीय अमेरिकी सजा पर कम शोध और डेटा है—क्योंकि उन्हें आमतौर पर मॉडल अल्पसंख्यक माना जाता है।

फिर भी, अर्बन इंस्टीट्यूट के शोध से पता चलता है कि एशियाई अमेरिकियों को लेकर आपराधिक न्याय डेटा अक्सर गायब या अधूरा होता है क्योंकि “एक चौथाई राज्य एजेंसियां ‘एशियाई’ को अपनी नस्ल श्रेणी के रूप में शामिल नहीं करती, और क्योंकि भारी बहुमत में बंदियों को राज्य जेलों में रखा जाता है।”

एशियाई होने का यह समग्र पदनाम उस नस्ल के भीतर अन्य समाजशास्त्रीय तत्वों को शामिल नहीं करता है—जिसमें मूल देश, त्वचा का रंग और आप्रवासन स्थिति शामिल है। डेटा की कमी भयावह है जबकि विशेष रूप से कोविड-19 महामारी के दौरान एशियाई भेदभाव से जुड़ी सुर्खियां बढ़ रही हैं। हालांकि पटेल एक अमेरिकी नागरिकहैं, हाल के डेटा से पता चलता है कि अवैध स्थिति वाले एशियाई प्रतिवादियों के कैद में होने की आशंका अमेरिकी नागरिकों की तुलना में अधिक है।

टेक्सास एएंडएम यूनिवर्सिटी के एक हालिया अध्ययन में पाया गया है कि अमेरिका में रहने वाले 3.5 मिलियन से अधिक दक्षिण एशियाई लोगों में से कई के लिए नस्लीय और जातीय भेदभाव एक नियमित घटना है, और यह असमानता कम उम्र में शुरू होती है।

फोटो- https://mma.prnewswire.com/media/1981902/Patel_Newswire_1.jpg 

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