आखिर इतना क्यों मजबूर हो गई !

जब भी तुम्हें अपना बनाने की बात किया करता था,
तुम तो अक्सर मुझे भुला दिया करती थी।
खुद ही मुझे बेवफा कहा करती थी।
मेरा कसूर केवल इतना था कि,
जिन्दगी  के हर एक मोड़ पर तुमे याद करता था।
तुमे अपना बनाने की बात करता था।

तुम्हे तो याद होगा , जब गलियों में रात हुआ करती थी।
तब हमारी अँधेरे में मुलाकात हुआ करती थी।
तब तो तुम्हे अमावश की रात भी अच्छी लगती थी।
मेरे कहीं हुई हर बात अच्छी लगाती थी।
फिर ऐसा क्या हुआ जो दूर हो गई,
आखिर इतना क्यों मजबूर हो गई।

अब तो मैं तेरी हर एक छुवन को याद करता हुं।
तनहाइयों में अक्सर तुम से बात करता हुं।
तेरी गर्म सासों में जब मैंने अपनी सासों को समाया था।
उस समय हम ने  एक दुसरे में जहा को पाया था,
चांदनी रातो में हजारो वादे किया करते थे।
एक दुसरे का साथ निभाने की कसमे खाया करते थे।
फिर ऐसा क्या हुआ जो दूर हो गई,
आखिर इतना क्यों मजबूर हो गई।

मानेन्द्र कुमार भारद्वाज

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