दीमकों के कहर से तो सभी खौफ खाते हैं। चाहे लकड़ी का फर्नीचर हो किताब हो कागज हो या पिर कपड़े हों या फिर खड़ी फसल हो , सभी को दीमक बदनाम है। मगर दीमकों की बांबियों में प्रयुक्त मिट्टी बड़ी उपजाऊ होती है। एक प्राकृतिक उर्वरक की तरह से ही यह काम करती है। मूर्तियां , मिट्टी के बर्तन , चूल्हे , ईंट आदि बनाने में इस मिट्टी का उपयोग होता है ।
प्राचीन काल में तो दीमकों की बाकायदा पूजा होती थी। ऋगवेद अर्थववेद में दीमकों की बांबियों को भूमिगत जल या भौमजल के पाये जाने का संकेत माना जाथा था। आधुनिक वैज्ञानिक खोजों से इन धारणाओं की पुष्टि हुई है। बांबियों के अंदर नमी के के उचित स्तर को बनाए रखने के लिए दीमकों का भूगर्भ में मौजूद पानी से हमेशा संपर्क बना रहता है। नमी को बरकरार रखने के लिए दीमक बराबर भौमजल को बांबियों के अंदर पहुंचाते रहते है। दक्षिण अफ्रीका और आस्ट्रेलिया में किए गये शोध-अध्यनों से इसकी पुष्टि हुई है। बाहर घोर सूखे बावजूद बांबियों के अंदर मौजूद नमी इस बात का प्रमाण बनी है।
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